Last updated on : 28 Nov, 2025
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गिलोय, जिसे गुडूची या अमृता के नाम से भी जाना जाता है, एक बेलनुमा औषधीय पौधा है जो मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है। यह पौधा पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा में लंबे समय से उपयोग में लाया जा रहा है और इसे इसके पारंपरिक रूप से माने जाने वाले स्वास्थ्य लाभों के लिए सराहा जाता है।
आयुर्वेद में गिलोय को त्रिदोष नाशक—अर्थात् वात, पित्त और कफ को संतुलित करने वाला—माना जाता है। इसकी तने, पत्ते और जड़ें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, परंतु आयुर्वेद में विशेष रूप से इसके तने का सबसे अधिक उपयोग होता है।
गिलोय को ‘रसायन’ की श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है ऐसा पदार्थ जो संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने और उम्र संबंधी गिरावट को धीमा करने में पारंपरिक रूप से सहायक हो सकता है। इसमें प्राकृतिक रूप से मौजूद यौगिक जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन-रोधी), और इम्युनोमॉड्यूलेटरी (प्रतिरक्षा को संतुलित करने वाले) गुण सहायक हो सकते हैं [1]।
कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पाया गया है कि गिलोय में विटामिन सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन जैसे पोषक तत्व भी होते हैं, जो इसे एक पोषणयुक्त जड़ी-बूटी बनाते हैं [2]। हालांकि, इसके किसी भी उपयोग से पहले योग्य आयुर्वेदिक या एलोपैथिक चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है, विशेष रूप से यदि आप किसी विशेष रोग या स्थिति के लिए इसे लेना चाहते हैं। गिलोय के संभावित लाभों पर उच्च-गुणवत्ता वाले नैदानिक शोधों की आवश्यकता है, और इसके पारंपरिक उपयोगों को हमेशा नैदानिक पुष्टि के साथ संतुलित किया जाना चाहिए [3]।
गिलोय (Tinospora Cordifolia) एक बहुपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे पारंपरिक चिकित्सा में लंबे समय से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और शरीर को संतुलित रखने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसके कई लाभ शोध (मुख्यतः इन विट्रो परीक्षणों और पशु अध्ययनों) और पारंपरिक अनुभवों से जुड़े हुए हैं:
गिलोय में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो संक्रमण से लड़ने में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक हो सकते हैं [1]। पारंपरिक रूप से, यह डेंगू, मलेरिया और वायरल बुखार जैसी स्थितियों में उपयोगी मानी जाती है क्योंकि इसमें ज्वरनाशक (एंटीपायरेटिक) गुण हो सकते हैं [4]। इसके सेवन से शरीर का तापमान नियंत्रित हो सकता है और थकान व कमजोरी में राहत मिल सकती है। हालांकि, डेंगू या मलेरिया जैसे गंभीर संक्रमणों के लिए तत्काल और नियमित डॉक्टरी इलाज आवश्यक है।
गिलोय पाचन एंजाइमों की सक्रियता को बढ़ाने में मदद कर सकती है, जिससे अपच, गैस, और कब्ज जैसी समस्याओं में पारंपरिक रूप से राहत मिल सकती है। लेकिन इसके अत्यधिक सेवन से कुछ लोगों में पाचन संबंधी समस्याएं जैसे कब्ज या पेट में जलन भी हो सकती हैं [5]।
गिलोय को पारंपरिक रूप से एक नैचुरल ब्लड प्यूरीफायर के रूप में देखा जाता है। यह शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायता कर सकती है [6]। इससे त्वचा संबंधी समस्याओं जैसे मुंहासे और दाग-धब्बों में भी कुछ हद तक राहत मिलने की संभावना रहती है।
कुछ प्रारंभिक अध्ययनों से यह संकेत मिला है कि गिलोय इंसुलिन की कार्यप्रणाली को सपोर्ट कर सकती है, जिससे ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित रखने में मदद मिल सकती है [7]। गिलोय के यौगिक टाइप 2 मधुमेह के प्रबंधन में एक सहायक भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन यह इंसुलिन या अन्य मधुमेह दवाओं का विकल्प नहीं है [7]। डायबिटीज के रोगियों को किसी भी हर्बल उपचार को अपनाने से पहले सख्त चिकित्सकीय सलाह जरूर लेनी चाहिए क्योंकि यह मधुमेह की दवाओं के साथ मिलकर हाइपोग्लाइसीमिया (अत्यधिक कम रक्त शर्करा) का कारण बन सकती है [8]।
गिलोय में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो त्वचा की कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने में मदद करते हैं [1]। यह त्वचा को साफ, चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हो सकती है।
गिलोय का सेवन थकावट को कम कर शरीर को ऊर्जावान महसूस कराने में सहायक हो सकता है। यह शरीर की आंतरिक शक्ति को बनाए रखने और मानसिक सजगता को बेहतर बनाने में भी उपयोगी हो सकती है। आयुर्वेद में यह रसायन गुण ही इसे दीर्घायु और जीवनशक्ति के लिए मूल्यवान बनाता है [1]।
ध्यान रखें: गिलोय और अन्य आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के सेवन से पूर्व किसी योग्य आयुर्वेदाचार्य या आधुनिक चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है, विशेष रूप से यदि आप गर्भवती हैं, कोई पुरानी बीमारी से ग्रस्त हैं, या नियमित दवाएं ले रहे हैं।
हालाँकि गिलोय को एक बहुउपयोगी जड़ी-बूटी माना जाता है, लेकिन इसका उपयोग यदि असावधानीपूर्वक, अत्यधिक या लंबे समय तक किया जाए तो यह कुछ लोगों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके उपयोग से जुड़े जोखिमों को समझना संतुलन और सूचित निर्णय के लिए महत्वपूर्ण है।
चूंकि सुरक्षा डेटा उपलब्ध नहीं है, इसलिए गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गिलोय के सेवन से पहले अपने डॉक्टर से अनिवार्य रूप से सलाह लेनी चाहिए।
गिलोय का विभिन्न रूपों में सेवन किया जा सकता है। हालांकि, किसी भी रूप में इसका सेवन शुरू करने से पहले आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से व्यक्तिगत खुराक और अवधि की पुष्टि करना सबसे महत्वपूर्ण है।
सेवन विधि: आमतौर पर 2 से 3 चम्मच जूस को आधा गिलास पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट लिया जाता है।
सेवन विधि: आमतौर पर आधा से एक चम्मच चूर्ण को गर्म पानी या शहद के साथ रात में सोने से पहले लेने की सलाह दी जाती है।
सेवन विधि: पारंपरिक रूप से 10–20 मि.ली. रस या चिकित्सक की सलाह के अनुसार घनवटी का सेवन करें।
सेवन विधि: बाजार में उपलब्ध गिलोय कैप्सूल का सेवन डॉक्टर या आयुर्वेदाचार्य की सलाह के अनुसार करें। दवा का निर्माण और पैकेजिंग विवरण अवश्य जांचें।
गिलोय के उपयोग में कुछ आवश्यक सावधानियों का पालन करना ज़रूरी है ताकि इसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
गिलोय (Tinospora Cordifolia) एक प्रभावशाली और प्राकृतिक औषधि है, जो आयुर्वेद में ‘रसायन’ के रूप में मानी जाती है और इसे पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में सहायक माना जाता है [1]। इसके संभावित लाभों में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना, पाचन में सुधार, ऊर्जा में वृद्धि और विभिन्न रोगों से बचाव में सहायता शामिल हैं।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि गिलोय के लाभ मुख्य रूप से पारंपरिक ज्ञान और प्रारंभिक अध्ययनों पर आधारित हैं, और मानवों में इसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता पर और उच्च-गुणवत्ता वाले नैदानिक अध्ययनों की आवश्यकता है [3]। अत्यधिक खुराक से बचना और विशेष रूप से यकृत और गुर्दे के जोखिमों से अवगत होना अत्यंत आवश्यक है [9] [10]।
इस प्रकार, गिलोय को यदि आप एक प्रमाणित चिकित्सक की सलाह के अनुसार और सीमित मात्रा में अपने आहार या जीवनशैली में शामिल करते हैं, तो यह एक प्राकृतिक, प्रभावी और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प हो सकता है।
गिलोय एक प्रभावशाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और उसकी स्वाभाविक रक्षा क्षमता को बेहतर बनाने में सहायक मानी जाती है। यह बुखार, अपच और एलर्जी जैसी स्थितियों में लाभकारी हो सकती है, लेकिन यदि इसे अत्यधिक मात्रा में या बिना चिकित्सकीय सलाह के लिया जाए तो यह यकृत और किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। विशेष रूप से, ऑटोइम्यून बीमारियों या मधुमेह वाले मरीजों को गिलोय का सेवन केवल डॉक्टर की सीधी निगरानी में करना चाहिए। किसी भी हर्बल सप्लीमेंट की तरह, इसका उपयोग भी सावधानी और सूचित निर्णय के साथ ही करना उचित होता है।
-Dr. Sachin Singh
गिलोय का उपयोग आयुर्वेद में बुखार, सर्दी-खांसी, डेंगू, मलेरिया, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, और इम्युन सिस्टम की कमजोरी जैसी स्थितियों में सहायक रूप से किया जाता है।
गिलोय पारंपरिक रूप से पाचन शक्ति को सुधारने, बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम से राहत देने, शरीर को डिटॉक्स करने और ऊर्जा बढ़ाने में लाभकारी मानी जाती है।
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं, ऑटोइम्यून रोगों से ग्रस्त लोग (जैसे ल्यूपस, रूमेटॉइड आर्थराइटिस आदि), या कोई गंभीर यकृत/किडनी की समस्याओं वाले व्यक्ति गिलोय का सेवन सख्त चिकित्सकीय परामर्श के बिना न करें।
गिलोय का सीमित मात्रा में नियमित सेवन स्वस्थ वयस्कों के लिए आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। लेकिन दीर्घकालिक (लंबे समय तक) सेवन के कारण यकृत और किडनी पर पड़ने वाले संभावित जोखिमों को देखते हुए [9] [10], डॉक्टर से अवधि और मात्रा के बारे में सलाह अवश्य लें।
हाल ही में कुछ रिपोर्टों में गिलोय के अत्यधिक मात्रा और दीर्घकालिक सेवन को गंभीर किडनी संबंधी समस्याओं से जोड़ा गया है [10]। इसलिए, इसे हमेशा नियत मात्रा में और चिकित्सकीय मार्गदर्शन के साथ ही लेना चाहिए।
गिलोय लीवर को लाभ भी पहुंचा सकता है [6] लेकिन अत्यधिक या अनियंत्रित मात्रा में सेवन करने पर लीवर पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है [9]। लीवर की कोई पूर्व समस्या हो तो इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
ध्यान रखें: यह लेख और FAQ में दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सामान्य मार्गदर्शन के लिए है। किसी भी आयुर्वेदिक या हर्बल उपचार को नियमित रूप से शुरू करने से पहले प्रमाणित चिकित्सक या आयुर्वेदाचार्य की सलाह अवश्य लें।
[1] गुप्ता, ए., गुप्ता, पी., & बाजपेयी, जी. (2024). Tinospora Cordifolia (गिलोय): एक अत्यंत आशाजनक औषधीय आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी के विविध औषधीय प्रतिमानों पर एक अंतर्दृष्टि. Heliyon, 10(11), e26125. https://doi.org/10.1016/j.heliyon.2024.e26125
[2] घोष, एस., & साहा, एस. (2012). Tinospora Cordifolia: एक पौधा, अनेक भूमिकाएँ. Ancient Life Sciences, 31(4), 151-157. https://doi.org/10.4103/0257-7941.10734
[3] टिनोस्पोरा कॉर्डिफ़ोलिया. (2024, 28 सितंबर). National Institute of Diabetes and Digestive and Kidney Diseases (NIDDK). https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK608429/
[4] हुसैन, एल., आकाश, एम.एस.एच., ऐन, एन., & रहमान, के. (2015). Tinospora Cordifolia की दर्दनाशक, सूजनरोधी और ज्वरनाशक गतिविधियाँ. Advances in Clinical and Experimental Medicine, 24(6), 957–964. https://doi.org/10.17219/acem/27909
[5] सिंह, एस. एस., वंदना, एम., & के.पी., डी. (2003). Tinospora Cordifolia (गिलोय) के औषधीय गुण: एक सिंहावलोकन. Indian Journal of Pharmacology, 35(2), 83-91. https://medind.nic.in/ja/t03/i2/jat03i2p83.pdf
[6] शर्मा, वी., & पांडे, डी. (2010). सीसे के संपर्क में आए नर चूहों के रक्त प्रोफाइल पर Tinospora Cordifolia के लाभकारी प्रभाव. Toxicology International, 17(1), 8. https://doi.org/10.4103/0971-6580.68341
[7] शर्मा, आर., वशिष्ट, पी., & भार्गव, एस. (2020). मधुमेह में गिलोय: नैदानिक साक्ष्य और क्रियाविधि. Journal of Clinical and Diagnostic Research, 14(12), FC01-FC04. https://doi.org/10.7860/JCDR/2020/46313.14324
[8] सिंह, एस. एस., वंदना, एम., & के.पी., डी. (2003). Tinospora Cordifolia (गिलोय) के औषधीय गुण: एक सिंहावलोकन. Indian Journal of Pharmacology, 35(2), 83-91. https://medind.nic.in/ja/t03/i2/jat03i2p83.pdf
[9] साहनी, टी., कपूर, एस., वज़ीर, आर. & मिश्रा, पी. (2021). हर्बल सप्लीमेंट्स द्वारा प्रेरित लीवर की चोट: क्या गिलोय को भी अपराधी के रूप में शामिल किया जाना चाहिए? Journal of Clinical and Experimental Hepatology, 11(4), 519-524. https://doi.org/10.1016/j.jceh.2021.01.006
[10] कुमार, पी., & शर्मा, आर. (2021). कोविड-19 महामारी के दौरान अत्यधिक उपयोग के बाद गिलोय (Tinospora Cordifolia) से संबंधित गुर्दे की चोट: एक व्यवस्थित समीक्षा. Clinical Kidney Journal, 14(7), 1709–1716. https://doi.org/10.1093/ckj/sfab054
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