Last updated on : 11 Jul, 2025
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गिलोय, जिसे गुडूची या अमृता के नाम से भी जाना जाता है, एक बेलनुमा औषधीय पौधा है जो मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है। यह पौधा पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा में लंबे समय से उपयोग में लाया जा रहा है और इसे इसके संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए सराहा जाता है।
आयुर्वेद में गिलोय को त्रिदोष नाशक—अर्थात् वात, पित्त और कफ को संतुलित करने वाला—माना जाता है। इसकी तने, पत्ते और जड़ें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, परंतु आयुर्वेद में विशेष रूप से इसके तने का सबसे अधिक उपयोग होता है।
गिलोय को ‘रसायन’ की श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है ऐसा पदार्थ जो संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने और उम्र संबंधी गिरावट को धीमा करने में सहायक हो सकता है। इसमें प्राकृतिक रूप से मौजूद यौगिक जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन-रोधी), और इम्युनोमॉड्यूलेटरी (प्रतिरक्षा को संतुलित करने वाले) गुण पाए गए हैं।
कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पाया गया है कि गिलोय में विटामिन सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन जैसे पोषक तत्व भी होते हैं, जो इसे एक पोषणयुक्त जड़ी-बूटी बनाते हैं। हालांकि, इसके किसी भी उपयोग से पहले योग्य आयुर्वेदिक या एलोपैथिक चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है, विशेष रूप से यदि आप किसी विशेष रोग या स्थिति के लिए इसे लेना चाहते हैं।
गिलोय एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधि है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पाचन सुधारने और शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करती है। इसमें प्राकृतिक रूप से मौजूद पौष्टिक तत्व निम्नलिखित हैं:
पोषक तत्व | मात्रा (100 ग्राम गिलोय रस में अनुमानित) | लाभ |
कैल्शियम | 26 mg | हड्डियाँ मजबूत करता है। |
फाइबर | 1.4 g | पाचन तंत्र ठीक रखता है। |
आयरन | 1.0 mg | खून की कमी में लाभकारी |
विटामिन C | 3.0 mg | इम्यून सिस्टम मजबूत करता है। |
एंटीऑक्सीडेंट्स | प्रचुर मात्रा | शरीर को विषैले तत्वों से बचाता है। |
गिलोय को पारंपरिक चिकित्सा में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। इसमें ऐसे कई जैव सक्रिय यौगिक पाए जाते हैं, जो इसके औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, गिलोय में निम्नलिखित संभावित लाभ देखे गए हैं:
ध्यान रखें: हालांकि गिलोय को पारंपरिक रूप से एक सुरक्षित जड़ी-बूटी माना जाता है, लेकिन इसके किसी भी रूप का सेवन प्रारंभ करने से पहले चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है, विशेषकर यदि आप किसी पुरानी बीमारी से पीड़ित हैं या अन्य दवाएं ले रहे हैं।
गिलोय (Tinospora Cordifolia) एक बहुपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे पारंपरिक चिकित्सा में लंबे समय से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और शरीर को संतुलित रखने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसके कई लाभ शोध और पारंपरिक अनुभवों से जुड़े हुए हैं:
गिलोय में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो संक्रमण से लड़ने में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर सकते हैं। यह डेंगू, मलेरिया और वायरल बुखार जैसी स्थितियों में उपयोगी मानी जाती है। इसके सेवन से शरीर का तापमान नियंत्रित हो सकता है और थकान व कमजोरी में राहत मिल सकती है।
गिलोय पाचन एंजाइमों की सक्रियता को बढ़ाने में मदद कर सकती है, जिससे अपच, गैस, और कब्ज जैसी समस्याओं में राहत मिल सकती है। इसके सेवन से आंतों की क्रिया बेहतर हो सकती है और पेट के संक्रमणों से बचाव में भी मदद मिल सकती है।
गिलोय को पारंपरिक रूप से एक नैचुरल ब्लड प्यूरीफायर के रूप में देखा जाता है। यह शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायता कर सकती है। इससे त्वचा संबंधी समस्याओं जैसे मुंहासे और दाग-धब्बों में भी राहत मिलने की संभावना रहती है।
कुछ प्रारंभिक अध्ययनों से यह संकेत मिला है कि गिलोय इंसुलिन की कार्यप्रणाली को सपोर्ट कर सकती है, जिससे ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित रखने में मदद मिल सकती है। हालांकि, डायबिटीज के रोगियों को किसी भी हर्बल उपचार को अपनाने से पहले चिकित्सकीय सलाह जरूर लेनी चाहिए।
गिलोय में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो त्वचा की कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने में मदद करते हैं। यह त्वचा को साफ, चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हो सकती है।
गिलोय का सेवन थकावट को कम कर शरीर को ऊर्जावान महसूस कराने में सहायक हो सकता है। यह शरीर की आंतरिक शक्ति को बनाए रखने और मानसिक सजगता को बेहतर बनाने में भी उपयोगी मानी जाती है।
ध्यान रखें: गिलोय और अन्य आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के सेवन से पूर्व किसी योग्य आयुर्वेदाचार्य या आधुनिक चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है, विशेष रूप से यदि आप गर्भवती हैं, कोई पुरानी बीमारी से ग्रस्त हैं, या नियमित दवाएं ले रहे हैं।
हालाँकि गिलोय को एक बहुउपयोगी और पारंपरिक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी माना जाता है, लेकिन इसका उपयोग यदि असावधानीपूर्वक या अत्यधिक मात्रा में किया जाए तो यह कुछ लोगों के लिए हानिकारक भी हो सकता है। इसलिए इसके सेवन से पहले आवश्यक सावधानियों को समझना ज़रूरी है।
गिलोय का विभिन्न रूपों में सेवन किया जा सकता है। इसके सेवन का तरीका आपकी आवश्यकता, सुविधा और स्वास्थ्य लक्ष्य के अनुसार चुना जा सकता है। नीचे कुछ सामान्य और प्रभावी विधियाँ दी गई हैं:
गिलोय के लाभकारी गुणों के साथ-साथ इसके सेवन में कुछ आवश्यक सावधानियों का पालन करना ज़रूरी है, ताकि अनचाहे दुष्प्रभावों से बचा जा सके।
गिलोय एक प्रभावशाली और प्राकृतिक औषधि है, जो आयुर्वेद में ‘रसायन’ के रूप में मानी जाती है — अर्थात् वह तत्व जो संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखता है। इसके संभावित लाभों में इम्यूनिटी बढ़ाना, पाचन में सुधार, ऊर्जा में वृद्धि और रोगों से बचाव शामिल हैं।
लेकिन जैसा कि हर औषधि के साथ होता है, गिलोय का भी उपयोग संतुलन, सावधानी और सही मार्गदर्शन के साथ किया जाना चाहिए। इसका उचित सेवन न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
इस प्रकार, गिलोय को यदि आप डॉक्टर की सलाह के अनुसार और सीमित मात्रा में अपने आहार या जीवनशैली में शामिल करते हैं, तो यह एक प्राकृतिक, प्रभावी और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प बन सकता है।
गिलोय एक प्रभावशाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और उसकी स्वाभाविक रक्षा क्षमता को बेहतर बनाने में सहायक मानी जाती है। यह बुखार, अपच और एलर्जी जैसी स्थितियों में लाभकारी हो सकती है, लेकिन यदि इसे अत्यधिक मात्रा में या बिना चिकित्सकीय सलाह के लिया जाए तो यह यकृत और किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसलिए, गिलोय का सेवन संतुलित मात्रा में और विशेषज्ञ की सलाह के साथ ही करना उचित होता है।
-Dr. Sachin Singh
गिलोय का उपयोग आयुर्वेद में बुखार, सर्दी-खांसी, डेंगू, मलेरिया, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, और इम्युन सिस्टम की कमजोरी जैसी स्थितियों में सहायक रूप से किया जाता है। यह शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
गिलोय पाचन शक्ति को सुधारने, बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम से राहत देने, शरीर को डिटॉक्स करने और ऊर्जा बढ़ाने में लाभकारी मानी जाती है। यह एक प्राकृतिक इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है।
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं, ऑटोइम्यून रोगों से ग्रस्त लोग (जैसे ल्यूपस, रूमेटॉइड आर्थराइटिस आदि), या कोई गंभीर रोगी गिलोय का सेवन चिकित्सकीय परामर्श के बिना न करें।
गिलोय का सीमित मात्रा में नियमित सेवन—जैसे 1–2 चम्मच रस या 1 कैप्सूल/घनवटी प्रतिदिन—स्वस्थ वयस्कों के लिए आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। लेकिन लंबे समय तक सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
हाल ही में कुछ रिपोर्टों में गिलोय के अधिक मात्रा और दीर्घकालिक सेवन को गंभीर किडनी संबंधी समस्याओं से जोड़ा गया है। इसलिए इसे नियत मात्रा में और चिकित्सकीय मार्गदर्शन के साथ ही लें।
आमतौर पर गिलोय रस को 1–2 महीने तक लिया जा सकता है, प्रतिदिन सुबह खाली पेट 1–2 चम्मच (पानी मिलाकर)। यदि किसी विशेष स्वास्थ्य समस्या के लिए ले रहे हैं तो डॉक्टर से अवधि और मात्रा के बारे में स्पष्ट जानकारी लें।
गिलोय लीवर को लाभ भी पहुंचा सकता है लेकिन अत्यधिक या अनियंत्रित मात्रा में सेवन करने पर लीवर पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। लीवर की कोई पूर्व समस्या हो तो इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
गिलोय एक प्राकृतिक औषधि है, लेकिन कुछ लोगों में इसके दुष्प्रभाव जैसे—कब्ज, पेट दर्द, एलर्जी, या रक्त शर्करा के स्तर में गिरावट देखी जा सकती है। इसलिए इसका सेवन शुरू करने से पहले चिकित्सकीय सलाह लेना बेहतर है।
गिलोय घनवटी का सेवन सुबह खाली पेट या रात को सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ किया जा सकता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने में सहायक मानी जाती है। आमतौर पर 1-2 गोली प्रतिदिन पर्याप्त होती है, परंतु मात्रा डॉक्टर के अनुसार निर्धारित होनी चाहिए।
ध्यान रखें: इस FAQ में दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सामान्य मार्गदर्शन के लिए है। किसी भी आयुर्वेदिक या हर्बल उपचार को नियमित रूप से शुरू करने से पहले प्रमाणित चिकित्सक या आयुर्वेदाचार्य की सलाह अवश्य लें।
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