Last updated on : 20 Nov, 2025
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पिगमेंटेशन, जिसे सामान्यतः झाइयां भी कहा जाता है, त्वचा पर रंग में असामान्य बदलाव को दर्शाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब त्वचा में रंग देने वाले प्राकृतिक वर्णक (pigment), मेलानिन का उत्पादन असंतुलित हो जाता है, जिससे त्वचा के कुछ हिस्सों में काले, भूरे, या हल्के धब्बे दिखाई देते हैं [1]। यह समस्या ज्यादातर त्वचा पर असमान रंगत के रूप में दिखाई देती है जो कि न केवल त्वचा की बाहरी रंगत को प्रभावित करती है बल्कि व्यक्ति के आत्मविश्वास पर भी असर डाल सकती है। पिगमेंटेशन का इलाज एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन सही निदान, उपायों और इलाज से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इस ब्लॉग में हम पिगमेंटेशन क्या होता है, इसके लक्षण, कारण और इलाज के प्रमाणित घरेलू उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
पिगमेंटेशन (या डिस्कोलोरेशन) एक त्वचा की समस्या है जिसमें त्वचा के कुछ हिस्सों पर रंग में असामान्यता हो जाती है। यह असामान्यता मुख्य रूप से मेलानिन के असंतुलन के कारण होती है जो त्वचा, बाल और आँखों को रंग प्रदान करने वाला प्राकृतिक रंगद्रव्य है। जब मेलानिन का उत्पादन सामान्य से अधिक (हाइपरपिग्मेंटेशन) या कम (हाइपोपिग्मेंटेशन) हो जाता है, तो त्वचा पर काले, भूरे, या सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह समस्या त्वचा के विभिन्न हिस्सों में दिखाई देती है, जैसे चेहरे, गर्दन, हाथों और पीठ पर। यह सामान्यतः उम्र बढ़ने, सूरज की किरणों का अत्यधिक संपर्क, हार्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक कारणों से उत्पन्न होती है [2]।
पिगमेंटेशन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:
पिगमेंटेशन के कई कारण हो सकते हैं जो पर्यावरणीय, शारीरिक और जीवनशैली से संबंधित हैं। मेलेनिन के असंतुलित उत्पादन के पीछे निम्नलिखित कारक जिम्मेदार हो सकते हैं:
पराबैंगनी (UV) विकिरण पिगमेंटेशन का सबसे महत्वपूर्ण और आम कारण है [3]। सूरज से निकलने वाली पराबैंगनी (UV) किरणें त्वचा में मेलानिन के उत्पादन को बढ़ा देती हैं, एक सुरक्षा तंत्र के रूप में, जिससे त्वचा पर काले, भूरे, या पीले रंग के धब्बे उभर सकते हैं। लंबे समय तक UV किरणों के संपर्क में रहने से न केवल पिगमेंटेशन बल्कि त्वचा का जल्दी बूढ़ा होना और त्वचा कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है। इसलिए सूरज की किरणों से बचने के लिए सनस्क्रीन का नियमित रूप से उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हार्मोनल परिवर्तन पिगमेंटेशन का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है विशेष रूप से महिलाओं में। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के बढ़े हुए स्तर के कारण गर्भावस्था, जन्म नियंत्रण गोलियों का सेवन और मेनोपॉज जैसी स्थितियों में हार्मोन के स्तर में बदलाव होते हैं जो त्वचा पर मेलास्मा (Melasma) का कारण बन सकते हैं [4]। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को “गर्भावस्था मास्क” (मेलास्मा) का सामना होता है, जिसमें चेहरे पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह स्थिति आमतौर पर हार्मोनल असंतुलन के कारण होती है और गर्भावस्था समाप्त होने के बाद अक्सर कम हो जाती है, लेकिन बनी भी रह सकती है।
आनुवंशिक कारण पिगमेंटेशन के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में सामने आते हैं। मेलास्मा और कुछ प्रकार के सनस्पॉट्स (लेंटिगिनेस) सहित विभिन्न पिगमेंटेशन विकारों में एक मजबूत आनुवंशिक प्रवृत्ति देखी गई है [5]। यदि परिवार में किसी सदस्य को पिगमेंटेशन की समस्या है, तो यह संभावना अधिक होती है कि अगली पीढ़ी को भी इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। आनुवंशिक रूप से त्वचा में मेलानिन का उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे कुछ हिस्सों में अधिक या कम पिगमेंटेशन हो सकता है। आनुवंशिक पिगमेंटेशन जैसे ओटा नेवस (Nevus of Ota) को पूरी तरह से ठीक करना कठिन हो सकता है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
पिगमेंटेशन से बचाव संभव है अगर आप त्वचा की देखभाल और जीवनशैली में कुछ बदलाव करें। ये उपाय न केवल पिगमेंटेशन को रोकते हैं बल्कि त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखते हैं।
सूरज की किरणों से बचाव पिगमेंटेशन को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। सूरज की पराबैंगनी (UV) किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं और पिगमेंटेशन को बढ़ाती हैं। इसलिए, सूरज के संपर्क से बचने के लिए व्यापक स्पेक्ट्रम (Broad Spectrum) SPF 30 या उससे अधिक का सनस्क्रीन हर दो घंटे में दोबारा लगाना जरूरी है खासकर जब आप बाहर जा रहे हों। इसके अतिरिक्त, सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक सीधे धूप में निकलने से बचें क्योंकि इस दौरान UV किरणें सबसे अधिक हानिकारक होती हैं।
स्वस्थ आहार पिगमेंटेशन से बचने और त्वचा की सेहत को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आहार में एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाद्य पदार्थों, जैसे विटामिन C (साइट्रस फल), विटामिन E (नट्स और बीज), और बीटा-कैरोटीन (गाजर) का सेवन त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है [6]। ये मुक्त कणों (free radicals) से लड़ने में मदद करते हैं जो मेलानिन उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। पानी का भरपूर सेवन भी त्वचा को हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है जिससे पिगमेंटेशन की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
त्वचा की सही देखभाल पिगमेंटेशन से बचने और त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
पिगमेंटेशन का इलाज विभिन्न उपायों से किया जा सकता है, जो कि पिगमेंटेशन के प्रकार और समस्या की गंभीरता पर निर्भर करते हैं।
पिगमेंटेशन का इलाज करने के लिए टॉपिकल क्रीम्स एक चिकित्सकीय रूप से मान्य उपाय हो सकती हैं।
लेज़र उपचार पिगमेंटेशन कम करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है [7]।
केमिकल पील्स पिगमेंटेशन को ठीक करने के लिए एक प्रभावी उपचार हैं जो त्वचा की ऊपरी परत को हटाकर नई और ताजगी से भरी त्वचा को सामने लाते हैं।
पिगमेंटेशन को कम करने के लिए कई प्रभावी घरेलू उपचार उपलब्ध हैं जो प्राकृतिक रूप से त्वचा की देखभाल करते हैं। इनकी प्रभावशीलता आमतौर पर हल्के पिगमेंटेशन के लिए अधिक होती है और ये चिकित्सकीय उपचारों के पूरक हो सकते हैं।
पिगमेंटेशन को रोकने के लिए कुछ अतिरिक्त उपाय भी कारगर हैं। ये उपाय त्वचा के साथ-साथ समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं:
पिगमेंटेशन त्वचा की एक सामान्य समस्या है, जिसका कारण सूरज की किरणों, हार्मोनल असंतुलन, और आनुवंशिक कारण हो सकते हैं। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, यह प्रायः बढ़े हुए पित्त दोष से जुड़ा होता है जिसके लिए शीतलन और शोधन आवश्यक है। हालांकि, पिगमेंटेशन से बचने के लिए हम कई उपायों को अपनाकर इसे नियंत्रित कर सकते हैं। सूर्य से बचाव, स्वस्थ आहार, और त्वचा की नियमित देखभाल से हम इसे रोक सकते हैं। यदि पिगमेंटेशन हो जाए, तो टॉपिकल क्रीम्स, लेज़र उपचार और केमिकल पील्स जैसे चिकित्सकीय उपचार इसके इलाज में मदद कर सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उपचार की सफलता पिगमेंटेशन के कारण, गंभीरता और रोगी की उपचार के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। किसी भी नए उपचार को शुरू करने से पहले त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श लेना सबसे सुरक्षित कदम है।
विशेषज्ञ उद्धरण (Expert Quote)
“आयुर्वेद में त्वचा की प्राकृतिक चमक और रंगत को बनाए रखने के लिए शरीर के त्रिदोष – वात, पित्त और कफ का संतुलन अत्यंत आवश्यक माना गया है। पिगमेंटेशन जैसी समस्याएं मुख्यतः ‘भ्राजक पित्त’ दोष के असंतुलन से जुड़ी होती हैं, जो ताप और अम्लता (heat and acidity) के बढ़ने से होता है। ऐसे में शीतलनकारी आहार और जीवनशैली में सुधार, जैसे ताजा फल, हरी सब्जियां, त्रिफला, मंजिष्ठा, एलोवेरा और चंदन जैसे हर्बल उपचार का उपयोग, त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं। साथ ही सूरज की तेज किरणों से बचाव और मानसिक तनाव को कम करना भी बेहद जरूरी है। आयुर्वेद में, पिगमेंटेशन को आंतरिक शुद्धि के माध्यम से ठीक करने पर जोर दिया जाता है। घरेलू उपायों के साथ संयमित जीवनशैली अपनाकर इस समस्या को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है।”
Dr. Sachin Singh (बी.ए.एम.एस., आयुर्वेद विशेषज्ञ)
पिगमेंटेशन के लक्षण में त्वचा पर काले, भूरे या पीले रंग के धब्बे, झाइयां, और त्वचा का असामान्य रंग (हाइपर- या हाइपोपिग्मेंटेशन) शामिल हो सकते हैं।
पिगमेंटेशन का इलाज चिकित्सक की सलाह पर टॉपिकल क्रीम्स (हाइड्रोक्विनोन, रेटिनोइड्स), लेज़र उपचार, और केमिकल पील्स से किया जा सकता है। इसके अलावा, घरेलू उपचार जैसे एलोवेरा जेल और हल्दी का उपयोग भी सहायक हो सकते हैं।
हां, पिगमेंटेशन के लिए घरेलू उपाय हल्के मामलों में प्रभावी हो सकते हैं और ये चिकित्सा उपचारों के पूरक के रूप में काम करते हैं। इनमें मौजूद प्राकृतिक घटकों की सीमित सांद्रता के कारण, गंभीर मामलों में केवल घरेलू उपचार पर्याप्त नहीं होते।
पिगमेंटेशन को नियंत्रित करने के लिए त्वचा विशेषज्ञ द्वारा अनुशंसित हाइड्रोक्विनोन, विटामिन C, एज़ेलिक एसिड, और ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन सबसे प्रभावी उत्पाद होते हैं।
नहीं, पिगमेंटेशन सूरज की किरणों के अलावा हार्मोनल बदलाव (जैसे गर्भावस्था), आनुवंशिकता या त्वचा की चोट (पोस्ट-इंफ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन), कुछ दवाएं (जैसे फेनीटोइन) और रसायन भी इसे ट्रिगर कर सकते हैं। सूरज से बचाव इसे कम करने में सर्वाधिक मदद करता है।
पिगमेंटेशन को ठीक करने में कुछ हफ्तों से लेकर कई महीनों तक का समय लग सकता है और यह उपचार के प्रकार, पिगमेंटेशन की गहराई, और रोगी द्वारा सूरज से बचाव के पालन पर निर्भर करता है।
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https://doi.org/10.1002/ptr.5529
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