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पुरानी कब्ज के लिए 5 आयुर्वेदिक उपाय: पाएं राहत और स्वस्थ जीवन

Last updated on : 09 Nov, 2025

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कब्ज (Constipation) एक आम पाचन संबंधी समस्या है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सप्ताह में तीन बार से कम मल त्याग होता है या मल त्याग में कठिनाई, खिंचाव या अधूरापन महसूस होता है। जब यह स्थिति तीन महीने या उससे अधिक समय तक बनी रहती है, तो इसे पुरानी कब्ज (Chronic Constipation) कहा जाता है। पुरानी कब्ज से पीड़ित व्यक्ति को अपच, पेट में भारीपन, गैस और पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि समय पर उपयुक्त इलाज नहीं किया गया तो यह पाइल्स या फिशर जैसी गंभीर समस्याओं का रूप भी ले सकती है। आयुर्वेदिक उपचार, जो प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और जीवनशैली पर आधारित है, पुरानी कब्ज से राहत दिलाने में सहायक हो सकते हैं। आयुर्वेद केवल कब्ज का इलाज ही नहीं करता, बल्कि शरीर के संतुलन और संपूर्ण पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में भी मदद करता है।

कब्ज के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: कारण और समाधान

आयुर्वेद के अनुसार, कब्ज का मुख्य कारण वात दोष का असंतुलन माना जाता है। वात दोष शरीर में सभी गतियों (Movements) को नियंत्रित करता है, जिसमें आंतों की गति (Peristalsis) भी शामिल है। जब वात दोष अधिक सक्रिय हो जाता है या बिगड़ जाता है, तो आंतों में सूखापन और ठंडक बढ़ जाती है, जिससे मल कठोर हो जाता है और मल त्याग कठिन हो सकता है। अनुचित आहार (जैसे सूखा, ठंडा या बासी भोजन), अस्वास्थ्यकर जीवनशैली (जैसे कम पानी पीना, गतिहीन जीवन), और मानसिक तनाव इस असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से कब्ज का प्रबंधन प्राथमिक रूप से वात दोष को संतुलित करने पर आधारित है। इसके लिए कुछ विशेष जड़ी-बूटियों और उपायों का प्रयोग किया जाता है, जो पाचन को सहारा देते हैं, आंतों को नमी प्रदान करते हैं और मल त्याग को आसान बनाते हैं।

नीचे 5 प्रमुख आयुर्वेदिक उपचार बताए गए हैं, जो पुरानी कब्ज से राहत पाने में सहायक हो सकते हैं।

1. त्रिफला (Triphala)

त्रिफला तीन फलों – आंवला (Emblica officinalis), बिभीतक (Terminalia bellirica) और हरड़ (Terminalia chebula) का मिश्रण है। इसे आयुर्वेद में एक “रसायन” (पुनर्योजी) और हल्के विरेचक (Laxative) के रूप में जाना जाता है [1]। नियमित सेवन पाचन क्रिया को सहारा दे सकता है, आंतों की सफाई में मदद कर सकता है और मल त्याग को आसान बना सकता है [2]। इसे रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लिया जा सकता है। त्रिफला पेट की मांसपेशियों को उत्तेजित किए बिना आंतों को टोन करने में मदद करता है [3]

2. इसबगोल (Isabgol)

इसबगोल या साइलीयम हस्क (Psyllium husk) में घुलनशील और अघुलनशील फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह पानी को अवशोषित करके मल को नरम करता है और उसकी मात्रा (Bulk) बढ़ाता है जिससे मल त्याग सुगम हो सकता है [4]। इसे आमतौर पर पानी या दूध के साथ लिया जाता है। इसबगोल को धीमी गति से काम करने वाला विरेचक माना जाता है, और यह आंतों पर कोमल होता है [5]

3. हरड़/हरीतकी (Harad/Haritaki)

हरड़ (Terminalia chebula) को आयुर्वेद में पाचन तंत्र के लिए एक अत्यंत उपयोगी जड़ी-बूटी माना जाता है। इसे ‘औषधियों का राजा’ भी कहा जाता है। यह वात दोष को संतुलित करने और पाचन क्रिया को सहज बनाने में सहायक हो सकती है। इसका सेवन गुनगुने पानी या शहद के साथ किया जा सकता है। हरड़ को पाचन को बेहतर बनाने और आंतों की गतिशीलता (Motility) को सपोर्ट करने के लिए जाना जाता है [6]

4. एलोवेरा (Aloe Vera)

एलोवेरा (Aloe vera) के रस में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एंथ्राक्विनोन (Anthraquinones) जैसे यौगिक होते हैं जो पाचन तंत्र को सक्रिय करने और मल त्याग को आसान बनाने में मदद कर सकते हैं [7]। सुबह खाली पेट सीमित मात्रा में इसका सेवन पाचन क्रिया को सपोर्ट कर सकता है और कुछ व्यक्तियों में पेट की सूजन में आराम पहुंचा सकता है। एलोवेरा का उपयोग चिकित्सक की सलाह से ही करें, क्योंकि अधिक मात्रा में सेवन से दस्त या पेट में ऐंठन हो सकती है [7]

5. सौंफ (Fennel)

सौंफ (Foeniculum vulgare) पाचन सुधारने वाली एक सामान्य घरेलू जड़ी-बूटी है। भोजन के बाद इसके बीज चबाने या चाय में डालकर पीने से गैस, भारीपन और अपच जैसी समस्याओं में राहत मिल सकती है। इसके एंटीऑक्सीडेंट और सूजन कम करने वाले गुण आंतों के स्वास्थ्य को सहारा देते हैं। यह आंतों की चिकनी मांसपेशियों को आराम देने (Anti-spasmodic) में मदद करती है, जिससे गैस और सूजन कम हो सकती है [8]

आयुर्वेदिक उपायों का सही उपयोग

आयुर्वेदिक उपचारों का उपयोग करने से पहले किसी विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

आयुर्वेदिक उपाय उपयोग का तरीका
त्रिफला रात को सोने से पहले ½ से 1 चम्मच त्रिफला पाउडर को गुनगुने पानी या शहद के साथ लें।
इसबगोल एक चम्मच इसबगोल के बीज को एक गिलास पानी या दूध के साथ तुरंत पिएं (रात भर भिगोना आवश्यक नहीं)।
हरड़/हरीतकी एक चम्मच हरड़ का चूर्ण गर्म पानी के साथ लें।
एलोवेरा सुबह खाली पेट सीमित मात्रा में (लगभग 10-20 मिली) एलोवेरा का ताजा रस या जूस पिएं।
सौंफ भोजन के बाद सौंफ के बीजों को हल्का भूनकर चबाएं या सौंफ की चाय बनाकर सेवन करें।

नियमित सेवन से ये आयुर्वेदिक उपाय कब्ज की समस्या को कम करने और पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। साथ ही, खानपान और जीवनशैली में सुधार भी आवश्यक है ताकि बेहतर परिणाम मिलें।

आहार और जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन

कब्ज से राहत पाने के लिए सही आहार और जीवनशैली का पालन करना आवश्यक है।

  • फाइबर युक्त आहार: अपने भोजन में फल, सब्जियां और साबुत अनाज शामिल करें, क्योंकि इनमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है जो मल को मुलायम बनाकर कब्ज दूर करता है। (लक्ष्य: प्रतिदिन 25-30 ग्राम फाइबर)।
  • पर्याप्त जल सेवन: दिन भर कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना जरूरी है ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे और पाचन तंत्र ठीक से काम करे। निर्जलीकरण (Dehydration) कब्ज का एक प्रमुख कारण है।
  • नियमित व्यायाम: रोजाना कम से कम 30 मिनट की हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधि जैसे चलना, योग या स्ट्रेचिंग करें, जो आंतों की गतिशीलता (Peristalsis) को बेहतर बनाता है।
  • तनाव प्रबंधन: ध्यान, योग या अन्य मानसिक अभ्यास अपनाएं ताकि मानसिक तनाव कम हो और पाचन तंत्र प्रभावित न हो। आयुर्वेद तनाव को वात दोष के असंतुलन का एक प्रमुख कारण मानता है।

कब्ज में योग और व्यायाम का महत्व

कब्ज में योग और व्यायाम का अत्यंत महत्व होता है। विशेष रूप से पेट के बल किए जाने वाले योगासन जैसे पवनमुक्तासन, भुजंगासन और वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय करते हैं और मल त्याग को सरल बनाते हैं। ये योगासन पाचन तंत्र में रक्त संचार को बढ़ाते हैं, जिससे पाचन प्रक्रिया में सुधार होता है। नियमित योग और व्यायाम न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करते हैं, जो कब्ज के कारणों में से एक है। योग और व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करके, आप आंतों की प्राकृतिक गतिशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा का महत्व और उपचार का संतुलन

आयुर्वेदिक चिकित्सा कब्ज के उपचार में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल रोगों के लक्षणों को दबाने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि शरीर के समग्र संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने पर केंद्रित होती है। आयुर्वेद के माध्यम से कब्ज का दीर्घकालिक और स्थायी समाधान प्राप्त किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति न केवल रोगमुक्त होता है बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ और उपचार शरीर के दोषों को संतुलित कर पाचन तंत्र को सुदृढ़ बनाते हैं, जिससे कब्ज की समस्या कम होती है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी हर्बल उपचारों के लाभ और संभावित जोखिम दोनों होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ जड़ी-बूटियों का अत्यधिक या लंबे समय तक सेवन निर्भरता या अन्य पाचन समस्याओं का कारण बन सकता है। इसलिए, किसी भी आयुर्वेदिक उपचार को शुरू करने से पहले, विशेष रूप से पुरानी कब्ज के लिए, एक योग्य चिकित्सक से परामर्श करना सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है।

निष्कर्ष (Conclusion)

कब्ज एक आम लेकिन गंभीर समस्या बन सकती है यदि इसे नजरअंदाज किया जाए। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राकृतिक, सुरक्षित और प्रभावी विकल्प प्रदान करती है जो न केवल कब्ज से राहत देती है, बल्कि पाचन तंत्र को संतुलित और मजबूत भी बनाती है। त्रिफला, इसबगोल, हरड़, एलोवेरा और सौंफ जैसे उपाय लंबे समय तक लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं। इसके साथ ही संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, योग और पर्याप्त जल सेवन को अपनी दिनचर्या में शामिल करके हम इस समस्या को जड़ से समाप्त करने की दिशा में कार्य कर सकते हैं। यदि लक्षण लगातार बने रहें, तो किसी योग्य आयुर्वेदिक या चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें। एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर आप न केवल कब्ज से बल्कि कई अन्य पाचन संबंधी रोगों से भी बच सकते हैं।

Expert Quote

“आयुर्वेदिक उपचार सिर्फ कब्ज के लक्षणों को कम नहीं करता, बल्कि शरीर के दोषों को संतुलित करके पाचन तंत्र को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। इससे कब्ज का दीर्घकालिक समाधान मिलता है और साथ ही व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। सही आहार, नियमित योगाभ्यास और आयुर्वेदिक उपायों को अपनाने से हम कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव कर सकते हैं।”

Dr. Kavya Rejikumar

References

[1] Peterson, C. T., Deniston, K., & Chopra, D. (2017). Therapeutic Uses of Triphala in Ayurvedic Medicine. The Journal of Alternative and Complementary Medicine, 23(8), 607–614. https://doi.org/10.1089/acm.2017.0083

[2] Srikant, N., & Rao, V. K. (2014). Triphala: A comprehensive Ayurvedic review. ResearchGate. https://www.researchgate.net/publication/269846920_Triphala_A_comprehensive_ayurvedic_review

[3] Banyan Botanicals. (2024). An Ayurvedic Approach to Constipation Relief. https://www.banyanbotanicals.com/info/blog-the-banyan-insight/an-ayurvedic-approach-to-constipation-relief/

[4] Kumar, A., Kumar, N., Vij, J. C., Sarin, S. K., & Anand, B. S. (1987). Optimum dose of ispagula husk in patients with irritable bowel syndrome: relation of symptom relief to whole gut transit time and stool weight. Gut, 28(2), 150–155. https://doi.org/10.1136/gut.28.2.150

[5] Bashir, A., & Sizar, O. (2024, January 30). Laxative. National Library of Medicine; StatPearls Publishing. Retrieved from https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK537246/

[6] Hebbar, R. (2020, September 14). Constipation – Causes, Ayurvedic Treatment, Home Remedies, Diet. EasyAyurveda. https://www.easyayurveda.com/2015/04/15/constipation-causes-ayurvedic-treatment-home-remedies/

[7] Shen, X., Gong, L., Li, R., Huang, N., Zhang, H., Chen, S., Liu, Y., & Sun, R. (2024). Treatment of constipation with Aloe and its compatibility prescriptions. Chinese Herbal Medicines. https://doi.org/10.1016/j.chmed.2024.07.005

[8] Tharkan, T., Arora, R., & Mahajan, S. (2011). Evaluation of a novel herbal formulation for constipation: An open-label trial. PubMed Central. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3193686/

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