Last updated on : 27 Nov, 2025
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एलोवेरा (Aloe barbadensis), जिसे हिंदी में घृतकुमारी या घीकुआँर भी कहा जाता है, एक बहुउपयोगी पौधा है। एलोवेरा के उपयोग से व्यक्ति के स्वास्थ्य और सौंदर्य को संभावित लाभ मिल सकते हैं। इस पौधे के पत्तों में एक जैल जैसी सामग्री होती है जो न केवल सौंदर्य प्रसाधनों में बल्कि पारंपरिक औषधीय उपयोगों में भी अत्यधिक लोकप्रिय है [1]। एलोवेरा के फायदे और नुकसान दोनों को समझना आवश्यक है ताकि इसका सही तरीके से उपयोग किया जा सके और संभावित जोखिमों से बचा जा सके।
इस ब्लॉग में आपको एलोवेरा के वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर विभिन्न लाभ, इसके उपयोग, सावधानियाँ और इसके संभावित नुकसान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
एलोवेरा के नियमित उपयोग से शरीर को कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने की संभावना है। नीचे इसके कुछ प्रमुख अध्ययन-समर्थित लाभों का उल्लेख किया गया है:
त्वचा की नमी बनाए रखने के लिए एलोवेरा एक उत्कृष्ट विकल्प है। इसमें 98% पानी होता है जो त्वचा को हाइड्रेट करने में मदद करता है [2]। इसका जैल त्वचा पर लगाने से यह ऊपरी परत को शांत करता है और नमी को बनाए रखने में मदद कर सकता है, जिससे त्वचा फटने या डिहाइड्रेशन से बच सकती है। इसका उपयोग हल्के जलने (Minor Burns) और घाव भरने की प्रक्रिया में सहायता के लिए भी किया जाता रहा है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं [3]।
एलोवेरा का उपयोग त्वचा पर मुहांसे और दाग-धब्बों को हल्का करने के लिए किया जाता है। इसमें पाए जाने वाले एंटीबैक्टीरियल और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण मुंहासों को कम करने में मदद कर सकते हैं [4]। एलोवेरा जैल, जब अन्य उपचारों के साथ उपयोग किया जाता है, तो मुँहासे के घावों को भरने और निशान को कम करने में सहायक हो सकता है।
एलोवेरा को लगाने का फायदा यह भी है कि यह बालों की समस्याओं में खासकर रूसी (Dandruff) के इलाज में सहायक होता है। इसका उपयोग स्कैल्प की सफाई करने और उसमें जमा होने वाले फंगस और बैक्टीरिया को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है [4]। इसका एंटीफंगल गुण स्कैल्प की जलन और खुजली को शांत करने में मदद करता है।
एलोवेरा में एंजाइम्स और प्रोटीयोलाइटिक गुण होते हैं जो बालों की जड़ों को पोषण देकर बालों की वृद्धि को अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर सकते हैं। एलोवेरा का नियमित उपयोग बालों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने में मदद करता है।
एलोवेरा का जूस पाचन तंत्र को संतुलित करने में मदद कर सकता है। हालांकि, एलोवेरा के जूस के सेवन से पहले चिकित्सा सलाह आवश्यक है। पारंपरिक रूप से, इसका लेटेक्स (पत्ती के नीचे का पीला पदार्थ) कब्ज के इलाज के लिए इस्तेमाल होता रहा है, जिसमें एंथ्राक्विनोन नामक यौगिक होता है [5]।
एलोवेरा शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की प्राकृतिक प्रक्रिया में मदद करता है। शरीर के ‘डिटॉक्सिफिकेशन’ (विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने) की प्रक्रिया मुख्य रूप से लिवर और किडनी द्वारा की जाती है। एलोवेरा का जूस इन अंगों के सामान्य कार्य को अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान कर सकता है, लेकिन यह कोई जादुई डिटॉक्स उपाय नहीं है।
एलोवेरा का जैल घावों और जलन को ठीक करने के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है। इसमें प्राकृतिक एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो सूर्य के हल्के जलने (Sunburn) और छोटी-मोटी खरोंच में जलन और सूजन को कम करते हैं [3]।
एलोवेरा में मौजूद विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की इम्यूनिटी को सपोर्ट कर सकते हैं। कुछ शोधों से पता चला है कि एलोवेरा में लूपियोल, सैलिसिलिक एसिड और फिनोल्स जैसे घटक पाए जाते हैं, जिनमें रोगाणुओं के खिलाफ संभावित संक्रामक अवरोधक गुण देखे गए हैं [6]।
एलोवेरा का उपयोग डायबिटीज के रोगियों के लिए भी अध्ययन का विषय रहा है। कुछ प्रारंभिक मानव और पशु अध्ययनों से पता चलता है कि एलोवेरा का आंतरिक सेवन रक्त शर्करा (Blood Sugar) के स्तर को नियंत्रित करने में कुछ हद तक मदद कर सकता है [7]। हालांकि, यह इंसुलिन या किसी अन्य मधुमेह की दवा का विकल्प नहीं है, और इसका सेवन चिकित्सकीय निगरानी में ही किया जाना चाहिए।
एलोवेरा के उपयोग से पहले कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए और इसके संभावित नुकसानों को समझना आवश्यक है:
रोजाना बाहरी उपयोग (External Use) से यह त्वचा को हाइड्रेट करता है और दाग धब्बे कम करने में मदद कर सकता है। नियमित उपयोग से त्वचा शांत रहती है और निखार आ सकता है।
एलोवेरा का उपयोग पारंपरिक रूप से त्वचा की देखभाल, पाचन में सहायता और सामान्य प्रतिरक्षा समर्थन के लिए किया जाता रहा है। हालांकि, यह किसी भी रोग के इलाज के लिए कोई अनुमोदित दवा नहीं है। यह केवल एक सहायक पूरक (Complementary Supplement) हो सकता है। किसी भी रोग के उपचार के लिए हमेशा विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित होता है।
हाँ, एलोवेरा जैल को संसाधित करके (पूरी तरह से लेटेक्स हटाकर) सेवन किया जा सकता है। हालांकि, बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं खाना चाहिए क्योंकि कुछ लोग इसे पचाने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, और लेटेक्स घटक हानिकारक हो सकता है [5]।
इसे चेहरे पर नियमित रूप से लगाना चाहिए; कुछ पारंपरिक नुस्खों में आप इसे नींबू या शहद के साथ मिलाकर भी उपयोग कर सकते हैं। ध्यान दें: किसी भी उत्पाद से ‘गोरापन’ रातोंरात नहीं आता है, यह केवल त्वचा की रंगत को एक समान बनाने और चमकदार बनाने में मदद कर सकता है।
गंभीर रूप से फटी, संक्रमित या खुली त्वचा, या गर्भावस्था तथा स्तनपान करते समय (आंतरिक सेवन के लिए) इसका प्रयोग न करें। यदि आपको किसी प्रकार का रिएक्शन होता हो तो तुरंत इसका उपयोग बंद करें।
[1] Hamman, J. H. (2008). Composition and applications of Aloe vera leaf gel. Molecules, 13(8), 1599–1616. https://doi.org/10.3390/molecules13081599
[2] U.S. Department of Agriculture. (n.d.). Aloe vera. FoodData Central. https://fdc.nal.usda.gov/fdc-app.html
[3] Surjushe, A., Vasani, R., & Saple, D. G. (2008). Aloe vera: A short review. Indian Journal of Dermatology, 53(4), 163–166. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2763764/
[4] Sahu, P. K., Giri, D. D., Singh, R., Pandey, P., Gupta, S., Srivastava, A. K., Kumar, A., & Pandey, K. D. (2013). Therapeutic and medicinal uses of Aloe vera: A review. Pharmacology & Pharmacy, 4(8), 599–610. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3315193/
[5] Boudreau, M. D., & Beland, F. A. (2006). An evaluation of the biological and toxicological properties of Aloe barbadensis (Miller), Aloe vera. Journal of Environmental Science and Health, Part C, 24(1), 103–154. https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/16690538/
[6] Eshun, K., & He, Q. (2004). Aloe vera: A valuable ingredient for the food, pharmaceutical and cosmetic industries—A review. Critical Reviews in Food Science and Nutrition, 44(2), 91–96. https://doi.org/10.1080/10408690490424694
[7] Zhang, Y., Liu, W., Liu, D., Zhao, T., & Tian, H. (2016). Efficacy of Aloe vera supplementation on prediabetes and early non-treated diabetic patients: A systematic review and meta-analysis of randomized controlled trials. Nutrients, 8(7), 388. https://doi.org/10.3390/nu8070388
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